चिरंजीव सेमवाल
उत्तरकाशी। उत्तराखंड राज्य में भले ही पूर्व में बीजेपी सरकार ने संस्कृत को द्वितीय भाषा का दर्जा दिया हो लेकिन ये सब कागजों में है धरातल पर कुछ और ही है।
यही वजह रही कि जिस राज्य की संस्कृत को दिया भाषा का दर्जा दिया हो उसी राज्य में संस्कृत शिक्षा के बुरे हाल हैं। इसका अंदाजा इसी बात से भी लगाया जा सकता है कि राज्य में 90 फीसदी से अधिक महाविद्यालयों को उत्तर माध्यमा-इंटर, पूर्व मध्यमा (हाई स्कूल और इंटरमीडिएट् ) की मान्यता से चलाया जा रहा है जो कि नियम के विपरित है। इतना ही नहीं इनके पास कोई संसाधन तक नहीं है प्रोफेसर और स्टाफ की तो दूर की बात इन महाविद्यालयों के पास अपने नाम का बोर्ड तक नहीं है उसे भी जुगाड़ ढूंढकर हाई स्कूल – इंटर मीडिएट की नाम के बोर्ड की पीछे की साइड महाविद्यालय का नाम लिखकर अपना काम चला रहे हैं। उत्तराखंड राज्य में संस्कृत शिक्षा की गुणवत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जहां नाम के बोर्ड तक नहीं है और एक भी प्रोफेसर नहीं है वहां शिक्षा की क्या गुणवत्ता होगी ?
क्या कहते मुख्य शिक्षा अधिकारी
उत्तराखंड सरकार उत्तर माध्यमा-इंटर पूर्व मध्यमा हाईस्कूल और प्रथम जूनियर स्तर तक मान्यता देती है। यदि किसी विद्यालय में उत्तर माध्यमा, पूर्व मध्यमा की मान्यता और चला रहे शास्त्री -आचार्य तो नियम अनुसार गलत है। माध्यमा व पूर्व मध्यमा का अध्यापक यदि शास्त्री आचार्य में सेवा देता तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जायेगी। इस मामले की उत्तरकाशी जनपद में जांच की जायेगी।
सीएन काला मुख्य शिक्षा अधिकारी उत्तरकाशी।