थराली। 1968 में शहीद हुए सैनिक नारायण सिंह विष्टका उनके पैतृक घाट में 56 वर्षों के लंबे समयांतराल बाद सैनिक एवं राजकीय सम्मान के साथ गंमगीन माहौल के बीच अंतिम संस्कार कर दिया गया हैं। इस दौरान सेना की टुकड़ी ने उन्हें अंतिम सलामी दी। दरअसल 7 फरवरी 1968 को भारतीय वायुसेना का एएन-12 विमान ने चंडीगढ़ से उड़ान भरी यह विमान छह क्रू सदस्यों के साथ लेह पहुंचा। । जहां से भारतीय सेना के लोगो को लेह से चंडीगढ़ वापस लाया जा सके। विमान ने लेह से उड़ान भरी विमान में चालक दल सहित कुल 102 यात्री सवार थे, लेकिन चंडीगढ़ की ओर आते समय खराब मौसम की वजह से हिमाचल प्रदेश के ढाका ग्लेशियर के क्षेत्र में विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। विगत महिनों सेना एवं डोगरा स्काउट की खोज में उन्हें 4 शव मिलें थे।इन शवों में थराली विकासखंड के सोलर क्षेत्र में स्थित कोलपुड़ी गांव निवासी एवं सेना के मेडिकल कौर में तैनात नारायण सिंह के रूप में की गई, शव की शिनाख्त होने के बाद चाद गुरुवार को शहीद के शव को सेना का एक विशेष दस्ता लेकर कोलपुड़ी स्थित शहीद के घर पहुंचा। जहां पर ताबूत में तिरंगे में लिपटें सैनिक के शव को 56 वर्षों के लंबे समयांतराल में देख कर उनके भाई हीरा सिंह व जय सिंह, भतीजे प्रधान जयवीर सिंह, सुजान सिंह सहित शहीद की भतीजीयां और अन्य सगे-संबंधियों की आंखें छलछला उठी। परिजनों ने घर पर शहीद के अंतिम दर्शन किए, यहां पर सेना के द्वारा शहीद को शस्त्र सलामी दी। दोपहर करीब साढ़े 12 बजे दोपहर में शवयात्रा शुरू हुई। करीब डेढ़ बजें शव यात्रा शहीद के पैतृक घाट प्राणमती नदी के सिलौटबगड़ स्थित श्मशान घाट पहुंचा, जहां पर सेना की विशेष टुकड़ी ने शस्त्र सलामी के साथ शहीद को अंतिम सलामी दी। इसके बाद शहीद के परिजनों ने शहीद की चिता को गमगीन माहौल के बीच मुखाग्नि दी।