वरिष्ठ पत्रकार रजपाल बिष्ट की कलम से……
गोपेश्वर।उत्तराखण्ड राज्य जब अपनी स्थापना का रजत जयंती समारोह मनाने जा रहा है तो तब राज्य निर्माण आंदोलन की पटकथा की यादें भी बरबस ताजा हो जाती हैं। इसी दौर में सरकार अथवा सत्ता की परवाह किए बिना एक ऐसा बड़ा नौकरशाह भी था जो राज्य निर्माण आन्दोलनकरियों के स्वर में स्वर जै उत्तराखण्ड राज्य का उदघोष कर डालता था।
दरअसल बात वर्ष 1994 की है। उत्तराखण्ड राज्य निर्माण आन्दोलन का ज्वार चरम पर था। इसी दौर में चमोली के जिलाधिकारी के पद पर आईएएस सत्यजीत ठाकुर आशीन थे। उत्तराखण्ड राज्य निर्माण आंदोलन की चिंगारी पूरे पहाड़ों में फैल ही रही थी तो तब इसी दौर में उन्होंने डीएम का पदभार संभाला था। राज्य निर्माण आन्दोलन कुछ दिनों बाद चरम पर पहुंचा और डीएम तथा एसपी छोड़ पूरा सरकारी अमला भी राज्य निर्माण के पक्ष में सड़कों में कूद पड़ गया था।करीब 4 माह की इस आंदोलन में सरकारी से लेकर गैर सरकारी कार्यालयों और स्कूलों में ताले जड़ गए थे। यानि हर तरफ सन्नाटा पसर गया था। इसी दौर में चमोली का जिला मुख्यालय गोपेश्वर भी आंदोलन का केंद्र बिंदु बन गया था। जिला मुख्यालय गोपेश्वर में हर रोज राज्य निर्माण आन्दोलनकारी जिलाधिकारी को जुलूस प्रदर्शन के हुजूम के साथ ज्ञापन देने जाते थे। शुरूआती दौर के दो चार दिनों तक डीएम साहब एक तटस्थ नौकरशाह की भूमिका में रह कर ज्ञापन लेते थे। आंदोलन का यह सिलसिला हर रोज चलता रहता था। कुछ दिन बाद तो डीएम साहब भी आंदोलनकारियों के समर्थन में कूद पड़ उनके स्वर में स्वर मिलाने लगे। आंदोलनकारियों के साथ डीएम साहब कलेक्ट्रेट परिसर में उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के पक्ष में जोरदार नारेबाजी करने लगे। आंदोलनकारियों के हुजूम के बीच पहुंच कर डीएम सत्यजीत ठाकुर भी आज दो अभी दो ,उत्तराखण्ड राज्य दो। तथा जै उत्तराखण्ड राज्य के नारे लगा कर आंदोलनकारियों के अपने हो जाते। डीएम की राज्य निर्माण के पक्ष में यह नारेबाजी आंदोलनकारियों को खूब भाने लगती। इस तरह वह हर रोज इस नारे का उद्घोष करने लगे। कहा जा सकता है कि डीएम साहब भी जन भावना के आगे नतमस्तक होकर उनकी हां में हां मिला कर उनके अपने होते गए।
डीएम साहब की राज्य निर्माण के पक्ष में एक पहल और भी यादगार बनती है। पहाड़ी क्षेत्रों में 2 अक्टूबर 1994 के मुजफ्फरनगर गोली कांड के बाद पहली बार कर्फ्यू लगने लगा तो अन्य नगरों की तरह चमोली जनपद के कुछ नगरों में भारी तोड़ फोड़ के बाद कर्फ्यू लगाने की नौबत आ गई। डीएम साहब कर्फ्यू लगाने के खिलाफ थे किन्तु पुलिस प्रशासन के भारी दबाव के चलते उन्हें आदेश पर बूझे मन से दस्तखत करने पड़े। वह कर्फ्यू लगाने के सख्त खिलाफ थे। इसी बीच शांति व्यवस्था को लेकर कुछ नागरिकों के आग्रह पर कर्फ्यू आदेश को निरस्त करने की मांग उठी तो एसपी साहब इस पर राजी नहीं हुए। डीएम साहब नागरिकों की मांग पर हां पर हां भर गए। इसके बाद तो डीएम साहब ने कुछ नगरों में कर्फ्यू के आदेश को निरस्त कर डाला।इस आदेश को लेकर आंदोलनकारी डीएम के पक्ष में ही उमड़ कर उनको गले लगा गए। कहा जा सकता है कि कई नौकरशाह आम जनसरोकारो से जुड़े मसलों को लेकर जनता के साथ जुड़ जाते हैं । इनमें सत्यजीत ठाकुर का नाम भी जुड़ जाता है। एक डीएम के बतौर सरकार अथवा सत्ता की परवाह किए सत्यजीत ठाकुर का यह कदम इस बात का संकेत तो देता ही है कि जनभावना के आगे हर एक को नतमस्तक होना चाहिए। क्या मौजूदा नौकरशाह भी जनभावना के आगे नतमस्तक हो पाएंगे? यह सवाल है इसका जवाब तो कभी न कभी मिलता रहेगा।


