भारत के युवाओं पर मदन दास देवी जी हर समय करते थे अटूट विश्वास – प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

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@प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

नई दिल्ली : देश ने हाल ही में मदन दास देवी जी जैसी महान विभूति को खोया है। उनके जाने से मेरे साथ ही लाखों कार्यकर्ताओं को जो गहरा दुख हुआ, उसे शब्दों में व्यक्त करना कठिन है। आज मन को समझाना मुश्किल है कि मदन दास जी हमारे बीच में नहीं हैं। लेकिन मदन दास जी जैसे प्रभावशाली व्यक्तित्व के विचार और मूल्य सदैव हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे, हमें प्रेरणा देते रहेंगे।  

मैं अपने आपको सौभाग्यशाली मानता हूं कि मुझे मदन दास जी के साथ वर्षों तक करीब से काम करने का अवसर मिला। मैंने उनकी सादगी और मृदुभाषी स्वभाव को भी बहुत नजदीक से जाना। उनका जीवन बहुत सहज था। न तो उन पर सादगी का बोझ था और ना दिखावे का नामोनिशान। वे पूरी तरह से संगठन को समर्पित व्यक्ति थे और मेरे पास भी लंबे समय तक संगठन के कार्यों का दायित्व रहा है। इसलिए अधिकतर समय हमारे बीच की बातचीत संगठन का विस्तार, व्यक्ति निर्माण जैसे पहलुओं पर केंद्रित रहती थी। एक बार मैंने उनसे पूछा कि वे मूल रूप से कहां के रहने वाले हैं। उन्होंने मुझे बताया कि वे तो महाराष्ट्र के सोलापुर के पास के एक गांव से आते हैं, लेकिन उनके पूर्वज गुजरात के थे। वैसे ये उन्हें पता नहीं था कि गुजरात में कहां से थे। मैंने उन्हें बताया कि देवी उपनाम से मेरे एक शिक्षक थे, जो विसनगर के रहने वाले थे, इसलिए हो सकता है कि आप भी उधर के ही हों। बाद में मदन दास जी विसनगर गए और मेरे गांव वडनगर भी गए। वो मुझसे अधिकतर समय गुजराती में ही बातचीत करते थे। 

मदन दास जी धैर्यपूर्वक कार्यकर्ताओं की बातों को सुना करते थे और घंटों तक चली चर्चा को वो बहुत कम वाक्यों में संक्षेप में समेट लेते थे। उनकी एक विशेषता थी कि वे शब्दों से परे जाकर कार्यकर्ता की भावनाओं को बहुत जल्दी समझ लेते थे। मदन दास जी की जीवन यात्रा दर्शाती है कि कैसे स्वयं को पीछे रखकर और सामान्य कार्यकर्ताओं को जोड़कर बड़ी-बड़ी उपलब्धियां हासिल की जा सकती हैं। उनके पास Chartered Accountant की ट्रेनिंग थी, इसलिए वे चाहते तो आरामदायक जीवन जी सकते थे, लेकिन उनके जीवन का उद्देश्य कुछ और ही था। उन्होंने राष्ट्रनिर्माण को ही अपने जीवन का लक्ष्य बनाया।

भारत के युवाओं पर मदन दास जी को अटूट भरोसा था। वे देशभर के युवाओं को आपस में जोड़ने की क्षमता रखते थे। उन्होंने अपने जीवन का लंबा कार्यकाल अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) को मजबूत करने के लिए समर्पित कर दिया। मदन दास जी अपनी इस यात्रा में यशवंत राव केलकर जी से प्रभावित रहे, जिनके बारे में वे अक्सर बातें किया करते थे। यशवंत राव जी के कामों को उन्होंने न केवल आगे बढ़ाया, बल्कि उसे और समृद्ध किया। 

मदन दास जी का हमेशा जोर रहता था कि एबीवीपी के कामों में अधिक से अधिक छात्राओं की भागीदारी हो, और न सिर्फ ये भागीदारी तक सीमित रहे, बल्कि छात्राएं गतिविधियों का नेतृत्व करें। वे अक्सर कहते थे कि जब छात्राएं किसी सामूहिक गतिविधि में शामिल होती हैं तो वह प्रयास और ज्यादा संवेदनशील बन जाता है। विद्यार्थियों से मदन दास जी का गहरा लगाव था और वो अक्सर छात्रावासों में विद्यार्थियों के बीच घुलमिल जाते थे। आयु में फर्क होने के बावजूद वो नई पीढ़ी के साथ बहुत सहजता से तालमेल बिठा लेते थे। वे विद्यार्थियों के बीच हमेशा ऐसे काम करते रहे, जैसे पानी के बीच कमल। विद्यार्थियों के बीच रहकर भी वे कभी University Politics का हिस्सा नहीं बने। सामाजिक और राजनीतिक जीवन में कई ऐसे लोग हैं, जिनके जीवन को गढ़ने में मदन दास जी की बहुत बड़ी भूमिका रही है। लेकिन मदन दास जी ने कभी इस बात को प्रकट नहीं किया, क्योंकि यह उनके स्वभाव में ही नहीं था।

आजकल People Management, Talent management और Skill Management के Concepts बहुत ज्यादा Popular हैं। मदन दास जी यह बखूबी समझ लेते थे कि किस व्यक्ति में किस तरह की स्किल है और उसका टैलेंट संगठन के हित में कैसे काम आ सकता है। उनमें यह खासियत थी कि वे लोगों को उनकी क्षमताओं और टैलेंट के अनुरूप ही दायित्व सौंपते थे। जिस प्रकार एक माला में मोतियों को पिरोते हैं, उसी प्रकार वे कार्यकर्ताओं को भी संगठन में उचित दायित्व के साथ जोड़ देते थे। जब भी किसी कार्यकर्ता के पास कोई नया आइडिया होता था, तो उसकी हमेशा ये इच्छा रहती थी कि वो मदन दास जी के साथ शेयर करे। और इसकी एक वजह ये थी कि मदन दास जी नए आइडियाज को सुनने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। उनके साथ काम करने वाले लोग Self-motivated होते थे, इस  कारण से उनके नेतृत्व में न सिर्फ संगठनों का बहुत तेजी से विकास और विस्तार हुआ, बल्कि संगठन कहीं अधिक प्रभावी और सशक्त बने।  

आम तौर पर सार्वजनिक जीवन में लोगों को लगता है कि बहुत सारे लोगों से मिलना चाहिए, उनसे संपर्क करना चाहिए। मदन दास जी संपर्क को लेकर बहुत सेलेक्टिव थे। किससे मिलना, कब मिलना और जब मिलूंगा तो उससे क्या बात करना और इसमें कितना समय जाएगा। इन सबकी वो प्लानिंग करते थे। मदन दास जी के जो प्रवास और कार्यक्रम होते थे, उनमें वो कभी भी कार्यकर्ताओं पर बोझ नहीं बनते थे। उनका आना एक बहुत बड़े लीडर के साथ जो सुनामी आती है, उस तरह नहीं रहता था। वे एक ठंडी-मीठी लहर की तरह आकर चले जाते थे। और सारे कार्यकर्ताओं को, पूरी स्थानीय इकाई को प्रेरणा से भर देते थे। 

मैं अंतिम समय तक सतत उनके संपर्क में रहा। मैं हाल में जब भी उनको फोन करता था तो वे चार बार पूछने के बाद ही अपनी बीमारी के बारे में बात करते थे। अन्यथा वे हंसकर टाल जाते थे। उनकी इच्छा रहती थी कि मैं किसी पर बोझ नहीं बनूं। शारीरिक कष्ट के बावजूद भी वे प्रसन्नचित्त नजर आते थे। बीमारी में भी उनके मन में हमेशा ये भाव रहता था कि मैं समाज के लिए, देश के लिए क्या करूं। 

मदन दास जी का Academic Record काफी शानदार था और इसने उनके काम करने के तरीकों को एक खास आयाम दिया। वे बहुत अच्छे पाठक भी थे। जब भी कुछ अच्छा पढ़ते थे, तो उसे उस विषय से संबंधित लोगों को भेज देते थे। मुझे अक्सर ऐसी चीजें उनसे प्राप्त होती थीं, जिन्हें मैं अपने लिए बहुत उपयोगी पाता था। अर्थशास्त्र और नीतिगत मामलों की वे बहुत गहरी समझ रखते थे। वे एक ऐसा भारत देखना चाहते थे, जो किसी पर भी निर्भर नहीं हो। मदन दास जी ने एक ऐसे भारत की कल्पना की थी, जिसके प्रत्येक नागरिक के लिए आत्मनिर्भरता जीवन की वास्तविकता हो। एक ऐसे समाज का निर्माण हो जहां सम्मान, सशक्तिकरण और सामूहिक समृद्धि की भावना हो। आज भारत एक के बाद एक क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनता जा रहा है, इसे देखकर उनसे ज्यादा खुश कोई नहीं होता।

आज जब हमारा लोकतंत्र जीवंत है, युवा आत्मविश्वास से भरे हैं और देश उम्मीदों, आशाओं और आकांक्षाओं से भरा है, तब मदन दास देवी जी जैसी विभूतियों को याद करना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। उनका पूरा जीवन समाज की सेवा और राष्ट्र के उत्थान के लिए समर्पित रहा। 

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